
कोरबा/कटघोरा (आई.बी.एन -24)कटघोरा शासकीय अस्पताल में इन दिनों स्वास्थ्य सेवा से ज़्यादा घमंड, भ्रष्टाचार और गैर-जिम्मेदारी का बोलबाला दिखाई दे रहा है। ताज़ा घटनाओं ने इस अस्पताल की कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़े कर दिए हैं। सूत्रों और शिकायतों के अनुसार, यहाँ मरीजों से दुर्व्यवहार, जबरन रेफरिंग, और प्राइवेट हॉस्पिटल से मिलीभगत जैसी गम्भीर बातें सामने आई हैं।
ग्राम बरतराई निवासी चिंता कंवर ने जिला कलेक्टर को दी अपनी शिकायत में बताया कि उनके पिता मंगल सिंह कंवर को कटघोरा अस्पताल से बिना आवश्यक कारण के कृष्णा प्राइवेट हॉस्पिटल कोरबा रेफर कर दिया गया, जहाँ इलाज के नाम पर लाखों रुपए वसूले गए।
लेकिन यह मामला अकेला नहीं है — सूत्रों के अनुसार कटघोरा अस्पताल में यह “रेफर का खेल” लंबे समय से चल रहा है। यहाँ सामान्य बीमारियों वाले मरीजों को भी जानबूझकर कोरबा या निजी अस्पतालों में भेजा जाता है, जिससे कमीशनखोरी का चक्र चलता रहे।
बीपी के मरीज को भी रेफर — क्या अब सरकारी अस्पताल में साधारण इलाज भी नहीं होगा?
सूत्रों का बड़ा खुलासा है कि हाल ही में एक विभाग के कर्मी, जो एक अपराधी को जेल भेजने से पहले मेडिकल जांच के लिए अस्पताल पहुँचे थे, केवल ब्लड प्रेशर की समस्या से ग्रसित थे। इसके बावजूद उपस्थित महिला डॉक्टरों ने उन्हें भी रेफर कर दिया!
प्रश्न यह उठता है — क्या कटघोरा के शासकीय अस्पताल में अब बीपी का इलाज भी संभव नहीं है? सूत्रों के अनुसार, वहाँ उपस्थित महिला डॉक्टरों का रवैया अत्यंत अहंकारी और असंवेदनशील है। कहा जा रहा है कि यह डॉक्टर अपने पद के दंभ में मरीजों से रूखा व्यवहार और असम्मानजनक भाषा का प्रयोग करती हैं।
यहां तक कि कुछ विभाग के अधिकारी, जो कानून-व्यवस्था बनाए रखने में अस्पतालों की मदद करते हैं, उनसे भी असभ्य व्यवहार किया गया। एक सूत्र के अनुसार, “जब कुछ विभाग तक यहाँ अपमानित हो रहे हैं, तो आम नागरिकों की हालत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।”
मिलीभगत का बड़ा खेल — प्राइवेट हॉस्पिटल से सीधा कनेक्शन
विश्वसनीय सूत्रों का दावा है कि कटघोरा शासकीय अस्पताल के कुछ कर्मचारी और डॉक्टरों की कृष्णा प्राइवेट हॉस्पिटल, कोरबा से मिलीभगत है। अस्पताल में आने वाले कई मरीजों को जानबूझकर डराकर, झूठा खतरा बताकर, वहाँ रेफर कर दिया जाता है, जहाँ इलाज के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है।
यह नेटवर्क न केवल आम जनता की जेब पर डाका डाल रहा है, बल्कि सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की साख को भी खत्म कर रहा है।
जनता और विभाग में गुस्सा
कटघोरा क्षेत्र में यह मामला अब जनता और विभाग दोनों के बीच आक्रोश का विषय बन गया है। नागरिकों का कहना है कि अस्पताल में सेवा भावना की जगह रौब और कमीशनखोरी का माहौल है।
सामाजिक संगठनों और पत्रकारों ने कहा कि इस तरह का आचरण “जनसेवा नहीं, जनशोषण” है।
कलेक्टर से निष्पक्ष जांच और कार्रवाई की मांग
लोगों ने जिला कलेक्टर कोरबा से माँग की है कि कटघोरा अस्पताल की महिला डॉक्टरों और स्टाफ के व्यवहार, रेफरिंग पैटर्न और निजी हॉस्पिटल कनेक्शन की निष्पक्ष जाँच कराई जाए।
जनता का कहना है कि जब सरकारी अस्पताल ही लूट और घमंड का केंद्र बन जाए, तो प्रशासन को अब सख्त कदम उठाने होंगे।
एक सवाल पूरे सिस्टम से
क्या गरीब, पुलिसकर्मी और आम जनता का सरकारी अस्पताल में कोई सहारा नहीं बचा?
अगर जवाब “नहीं” है, तो अब वक्त आ गया है कि कटघोरा अस्पताल पर प्रशासनिक एक्शन और सीधी निगरानी की जाए — क्योंकि यहाँ का इलाज नहीं, अहंकार ही सबसे खतरनाक बीमारी बन चुका है।
