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शासन की रोक और कलेक्टर के निर्देशों के बावजूद BEO के.आर.दयाल की मनमानी — शिक्षा विभाग की साख पर सवाल..?

कोरबा (आई.बी.एन -24) छत्तीसगढ़ शासन जहां शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और अनुशासन स्थापित करने के लिए लगातार प्रयासरत है, वहीं कुछ अधिकारी शासन की नीतियों को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं।
इसी का ज्वलंत उदाहरण विकासखण्ड पोंडीउपरोड़ा के बीईओ के.आर.दयाल हैं, जिन पर लगातार मनमानी, पद का दुरुपयोग और शासन आदेश की अवहेलना के आरोप लग रहे हैं।

शासन का स्पष्ट आदेश — “संलग्नीकरण पूर्णतः प्रतिबंधित

छत्तीसगढ़ शासन, स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा 02 सितंबर 2025 को जारी आदेश क्रमांक एफ 02-06/2014/20-2(तीन) में यह स्पष्ट निर्देश दिए गए थे कि —

“राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत शिक्षकों का युक्तियुक्तकरण किया जा चुका है, अतः किसी भी प्रकार का शिक्षकों का संलग्नीकरण न किया जाए।”

इस आदेश पर अवर सचिव आर.पी. वर्मा के हस्ताक्षर हैं, और यह निर्देश पूरे प्रदेश के कलेक्टरों, डीईओ और शिक्षण अधिकारियों को भेजा गया था।

शासकीय आदेश के खिलाफ बीईओ ने निकाला विपरीत आदेश।

इसके बावजूद 9 अक्टूबर 2025 को बीईओ के.आर. दयाल ने अपने स्तर पर आदेश जारी कर श्रीमती रामेश्वरी रात्रे, शिक्षक (एल.बी.), को मा.शा. माचाडोली से मा.शा. चोटिया संलग्न कर दिया।
सवाल यह उठता है कि जब संकुल प्राचार्य लमना अंतर्गत माध्यमिक शालायें है,वहाँ के शिक्षक को व्यवस्था के तहत अध्यापन क्यो नही कराया जा रहा।जबकि इतनी दूर (लगभग 35-40 किमी)से अन्य संकुल प्राचार्य डीडीओ अंतर्गत के शिक्षिका को संलग्न करने की क्या आवश्यकता पड़ी?
यह आदेश शिक्षा व्यवस्था नहीं, बल्कि किसी और उद्देश्य की पूर्ति करता दिख रहा है।

सूत्रों का दावा — “लेन-देन और अनुचित लाभ का मामला”

विभागीय सूत्रों के अनुसार, बीईओ दयाल द्वारा जारी इस तरह के आदेश लेन-देन के माध्यम से अनुचित लाभ लेने की प्रवृत्ति को दर्शाते हैं।
स्थानीय शिक्षकों ने बताया कि यह पहला मामला नहीं है — इससे पहले भी कई मनमाने आदेश जारी किए गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, उनके पिछले कार्यकाल जीपी एम जिले में रहते हुए भी इसी तरह के विवाद सामने आए थे और उन पर विभागीय कार्रवाई हो चुकी है, जिसके बाद उन्हें वहां से हटाया गया था।
अब पोंडीउपरोड़ा में पदस्थ होते ही वे फिर उसी पुरानी कार्यशैली और प्रभावशाली दबाव की नीति पर चल पड़े हैं।

विभाग और प्रशासन की चुप्पी पर उठ रहे सवाल।

कलेक्टर कोरबा अपने सख्त और पारदर्शी प्रशासन के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने शिक्षकों की अनुपलब्धता वाले स्कूलों में तत्काल व्यवस्था के निर्देश दिए थे।
लेकिन बीईओ स्तर पर शासन और कलेक्टर दोनों के आदेशों को ठेंगा दिखाना गंभीर प्रशासनिक लापरवाही है।
फिर भी शिक्षा विभाग की चुप्पी यह संकेत देती है कि या तो मामले को दबाया जा रहा है या संरक्षण दिया जा रहा है।

शिक्षकों की मांग — “तत्काल निलंबन और जांच”

शिक्षक संगठनों ने शासन और जिला प्रशासन से मांग की है कि बीईओ के.आर. दयाल द्वारा जारी आदेशों की जांच कर तत्काल निलंबन की कार्रवाई की जाए।
उनका कहना है कि जब शासन स्वयं संलग्नीकरण पर पूर्ण रोक लगा चुका है, तो ऐसे आदेश सीधे शासन के विरुद्ध (Anti-Government) हैं और यह अधिकारियों की जवाबदेही पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं

संकुल में शिक्षक उपलब्ध होने के बावजूद दूरस्थ संलग्नीकरण — सूत्रों के अनुसार लेन-देन का मामला, बीईओ पर पहले भी हो चुकी कार्रवाई।

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