रूंगटा,बालाजी, तिवारी अन्य ठेका कंपनियां लगातार कर रही मजदूरों का शोषण।
भूख हड़ताल करने पर मजदूरों को काम से निकालने की धमकी व गाली गलौच।
कोरबा (आई.बी.एन 24)। छत्तीसगढ़ राज्य के कई जिलों में साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड कंपनी, मिट्टी खनन व कोयला उत्पादन को लेकर कार्य संचालित है। कोयला उत्खनन वाली क्षेत्र में एसईसीएल के छोटे–छोटे कार्यालय भी मौजूद है। एसईसीएल में मिट्टी खनन या कोयला उत्पादन के कार्य का अगर निजी ठेका कंपनियों को टेंडर प्राप्त होती है। तो यह बाहरी कंपनियों के द्वारा अन्य प्रांत से कर्मचारी लाई जाती हैं, अन्यथा स्थाई निवासियों को कार्य पर रखते हैं। दोनों ही स्थिति में एचपीसी रेट भुगतान करने को लेकर ये आउटसोर्सिंग कंपनियां मजदूरों का शोषण करते हैं। और बात जब मजदूरों के हक अधिकार की होती है तो कार्यरत ठेका श्रमिकों को कम से बैठा दिया जाता है या फिर मारपीट गाली गलौज करते हुए उन्हें कार्य ही नहीं दिया जाता। ऐसा ही मामला एसईसीएल गेवरा क्षेत्र में आउटसोर्सिंग कंपनियां रूंगटा, बालाजी, तिवारी जो कि गेवरा खदान में कोयला उत्पादन का कार्य कर रही है, में देखने को मिला है।
बिलासपुर एसईसीएल सीएमडी व सभी क्षेत्र के प्रबंधन और आउटसोर्सिंग ठेका कंपनियों की मिली भगत शामिल
आपको बता दें कि एसईसीएल में छोटे स्तर पर काम करने वाले निजी ठेका कंपनियों और गेवरा सीसीएल प्रबंधन की सांठ गांठ से मजदूरों के पेमेंट में कटौती लंबे समय से की जा रही है। ठेका श्रमिकों को एचपीसी दर से मासिक पेमेंट अदा नही करते हुए पेमेंट कटौती की जा रही है या फिर यूं कहना लाजमी होगा कि मजदूरों के मेहनताना राशि का चोरी किया जा रहा है। और यहीं से शुरू होती है मजदूरों के हक अधिकार की क्रान्ति।
ऊर्जाधानी नगरी कोरबा जिले के एसईसीएल गेवरा खदान ही नहीं बल्कि मानिकपुर, कुसमुंडा गेवरा, दिपका अन्य जितने भी खदान हैं और जिस कोयला खदानों में आउटसोर्सिंग कंपनियां कार्यरत हैं यह सिर्फ मजदूरों का शोषण करते हैं एक प्रकार से मजदूरों का पेमेंट कटौती को लेकर कंपनियों के द्वारा पेमेंट कटौती का प्रोपेगेंडा लंबे समय से चल रहा है। ऐसी कंपनियों के विरुद्ध कार्यवाही करना एसईसीएल प्रबंधन मुनासिब नहीं समझता। और निजी कंपनियों से हाथ मिलाकर सांठगांठ करते हुए सीसीएल प्रबंधन और निजी कंपनियां मजदूरों का शोषण करती है।
श्रम कानूनों की उड़ाई जा रही है धज्जियां
अधिकांश मजदूर कम पढ़े लिखे होने के कारण अन्यथा श्रम कानून की जानकारी नहीं होने के अभाव में शोषण का शिकार होते रहे हैं। एसईसीएल के अधिकारी और अन्य प्रांत के बाहरी कंपनियों को सिर्फ कोयला उत्पादन से मतलब होता है। एक व्यापारी की तरह गरीब मजदूरों से कड़ी मेहनत करवाते हैं बदले में उन्हें मेहनत का भरपूर मेहनताना मासिक राशि भी नहीं देते है, और जो भी श्रमिक एचपीसी दर देने की बात सक्षम अधिकारी से करता है और शासन प्रशासन को सूचना देते हुए शांतिपूर्वक आंदोलन या हड़ताल सामूहिक समूह में किया जाता है तो उन्हें कार्य से निकाल दिया जाता है अन्यथा झूठे मामले पर थाने में एफ आई आर दर्ज करवा दिया जाता है। एक कहावत है सब्र का फल मीठा होता है अगर यह बात मजदूर अपने दिमाग में रख लें तो हर के आगे जीत निश्चित है। ऐसे मामलों के लिए श्रम कानून कोरबा जिले में ही नहीं समूचे भारत में प्रभाव पर है ऐसी कंपनियों की कार्यवाही के लिए क्षेत्र और स्टेट में लेबर कोर्ट बनी हुई है। विवाद की स्थिति में कानून को अपने हाथ में ना लेकर मजदूरों को विवेक से काम लेते हुए मामले को क्षेत्र के लेबर कोर्ट अन्यथा सेंट्रल गवर्नमेंट अपॉइंटमेंट लेबर ऑफ़ छत्तीसगढ़ बिलासपुर में पहुंचाने की जरूरत है। समाधान हेतु मामले की निपटारा के लिए मजदूरों की जीत निश्चित है। अन्यथा शासन प्रशासन को सूचना देते हुए सभी मजदूरों की एकता तथा खदान के कार्य अनिश्चितकालीन बंद।
आउटसोर्सिंग कंपनी के मालिक का दादागिरी..हड़ताल करने पर मजदूरों को काम से निकालने का धमकी
सूत्रों से क्या हुआ है कि गेवरा खदान के निजी कंपनियों के मालिकों के द्वारा मजदूरों को धमकी देते हुए कार्य से बैठा देने की बात कही गई है। जिससे कि मजदूर भयादोहन का सामना कर रहे हैं। यह बात गेवरा प्रबंधन के सामने कही गई है। आखिर ऐसी कंपनियों को किसका संरक्षण हासिल है..? मजदूरों के द्वारा बार-बार हड़ताल, आंदोलन या चक्का जाम खदान के भीतर करने के बावजूद एस ई सी एल बिलासपुर सीएमडी और गेवरा प्रबंधन मामले पर कोई कार्रवाई नहीं करती आखिर क्यों..? जाहिर सी बात है एस ई सी एल प्रबंधन और आउटसोर्सिंग कंपनियां मिल जुलकर कर्मचारियों का शोषण कर रही है और जेब भरने का कार्य करने पर किसी भी प्रकार की कोई चूक नहीं की जा रही। यह मामला सिविल होने के कारण एस ई सी एल अधिकारियों और ठेका कंपनी के प्रबंधन के हौसले बुलंद है। जब तक ऐसे अधिकारियों और निजी ठेकवप्रबंधन के ऊपर श्रम कानून का उपयोग नहीं किया जाएगा। तब तक यह मजदूरों को परेशान और उनके साथ लगातार शोषण करती रहेगी।
बिलासपुर एसईसीएल सीएमडी कार्यालय से लेकर सभी जिले के एसईसीएल कार्यालय के अधिकारी है.. भ्रष्ट
जिले की बात कहें या न्यायधानी बिलासपुर की। समस्त मजदूरों तथा तरह-तरह के संगठनों ने कथित तौर पर एसईसीएल कंपनी के अधिकारियों और निजी कंपनियां के प्रबंधकों को चोर घोषित किया है। अंग्रेजों के जमाने में जितनी शोषण नहीं की जाती थी उससे ज्यादा आज आजाद भारत में मजदूरों के साथ शोषण चरम सीमा पर है। सक्षम अधिकारी कुर्सी पर बैठे हुए हैं तमासबिन व मुखदर्शक बने हुए हैं। इन्हें मजदूरों से कोई लेना देना नहीं सिर्फ व्यापारी बनकर व्यापार कर रहे हैं। कर्मचारी एवं मजदूरों को किसी भी प्रकार की कोई सेफ्टी सुरक्षा प्रदान नहीं दी जाती है। उनकी मृत्यु भी कोयला खान के भीतर हो जाती है तो घटनास्थल पर आना मुनासिब नहीं समझते। मजदूरों के परिवारों को मुआवजा देने के लिए भी कतराते हैं। एस ई सी एल बड़े-बड़े बात करने वाले अधिकारी मजदूरों को बेवकूफ बनाते हुए उनके जमीनों को भी अधिग्रहण कर लेते हैं। उन्हें रोजगार, मुआवजा, बसाहट देने का लालच देकर जमीन हथिया लेते हैं। और वर्षों से एसईसीएल कार्यालय के चक्कर लगवाते रहते हैं परंतु उनकी मांगे आज तक पूरी नहीं की गई। भूस्थापित और स्थाई निवासियों के मामले एसईसीएल बिलासपुर सीएमडी कार्यालय में पेंडिंग पर वर्षों से पड़ी हुई है जिनका निराकरण आज तक नहीं किया गया।
बिलासपुर एसईसीएल सीएमडी पत्रकारों से मिलने कतराते हैं.. बनाई जाती है बहाने बाजी..
बात जब सही गलत और सच्चाई की होती है तो सवाल बनना लाजमी है.. और सवालों के घेरे में एस ई सी एल के तमाम अधिकारी और सी एम डी सवालों के कटघरे में नजर आ रहे हैं। एस ई सी एल कार्यालय में जाने पर सीएमडी के द्वारा बहाने बाजी पूर्व देखी गई है। जिस सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया गया। जिससे सिद्ध है कि साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड के तमाम अधिकारी भ्रष्ट हैं और यही अधिकारी टेंडर प्राप्त निजी कंपनियों को संरक्षण देते हैं। एक कहावत है स्कूल में अगर टीचर अनपढ़ हो तो स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी अनपढ़ होंगे।